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Allama Iqbal Shayari

sajda khaliq ko

सजदा खालिक़ को भी इबलीस से याराना भी
हश्र में किस से मोहब्बत का सिला माँगे गा

ख़ुदी को कर बुलंद इतना के हर तक़दीर से पहले
ख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है
sajda khaliq ko

dilo ki imarto me

दिलों की इमारतों में कहीं बंदगी नहीं
पत्थर की मस्जिदों में ख़ुदा ढूँढते हैं लोग

बात सजदों की नहीं ख़ुलूस ए दिल की होती है इक़बाल
हर मैख़ाने में शराबी और हर मस्जिद में नमाज़ी नहीं होता
dilo ki imarto me

dil me khuda ka hona

दिल में ख़ुदा का होना लाज़िम है इक़बाल
सजदों में पड़े रहने से जन्नत नहीं मिलती

दिल पाक नहीं तो पाक हो सकता नहीं इंसाँ
वरना इबलीस को भी आते थे वुज़ू के फ़रायज़ बहुत
dil me khuda ka hona

tere azad bando ki

तेरे आज़ाद बंदों की न ये दुनिया न वो दुनिया
यहाँ मरने की पाबंदी वहाँ जीने की पाबंदी

यूँ तो ख़ुदा से माँगने जन्नत गया था मैं
करबो बला को देख कर निय्यत बदल गयी
tere azad bando ki

kon kehta hai

कौन ये कहता है, ख़ुदा नज़र नहीं आता
वही तो नज़र आता है जब कुछ नज़र नहीं आता

सजदों के इवज़ फ़िरदौस मिले ये बात मुझे मंज़ूर नहीं
बे लौस़ इबादत करता हूँ बंदा हूँ तेरा मज़दूर नहीं
kon kehta hai
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