aaj hi huaa manzoor

aaj hi huaa manzoor

मेह वो क्यों बहुत पीते बज़्म-ऐ-ग़ैर में या रब
आज ही हुआ मंज़ूर उन को इम्तिहान अपना
मँज़र इक बुलंदी पर और हम बना सकते ग़ालिब
अर्श से इधर होता काश के माकन अपना

Ghalib Shayari