मेह वो क्यों बहुत पीते बज़्म-ऐ-ग़ैर में या रबआज ही हुआ मंज़ूर उन को इम्तिहान अपनामँज़र इक बुलंदी पर और हम बना सकते ग़ालिबअर्श से इधर होता काश के माकन अपना