Shayari Of Gulzar
rishte nahi toda karte
हाथ छूटें भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते
वक़्त की शाख़ से लम्हे नहीं तोड़ा करते
मैं हर रात सारी ख्वाहिशों को खुद से पहले सुला देता
हूँ मगर रोज़ सुबह ये मुझसे पहले जाग जाती है
आइना देख कर तसल्ली हुई
हम को इस घर में जानता है कोई
वक़्त रहता नहीं कहीं टिक कर
आदत इस की भी आदमी सी है
वक़्त की शाख़ से लम्हे नहीं तोड़ा करते
मैं हर रात सारी ख्वाहिशों को खुद से पहले सुला देता
हूँ मगर रोज़ सुबह ये मुझसे पहले जाग जाती है
आइना देख कर तसल्ली हुई
हम को इस घर में जानता है कोई
वक़्त रहता नहीं कहीं टिक कर
आदत इस की भी आदमी सी है

tajurba kehta hai
तजुर्बा कहता है रिश्तों में फैसला रखिए
ज्यादा नजदीकियां अक्सर दर्द दे जाती है
खुली किताब के सफ़्हे उलटते रहते हैं
हवा चले न चले दिन पलटते रहते है
मुझसे तुम बस मोहब्बत कर लिया करो
नखरे करने में वैसे भी तुम्हारा कोई जवाब नहीं
खता उनकी भी नहीं यारो वो भी क्या करते
बहुत चाहने वाले थे किस किस से वफ़ा करते
ज्यादा नजदीकियां अक्सर दर्द दे जाती है
खुली किताब के सफ़्हे उलटते रहते हैं
हवा चले न चले दिन पलटते रहते है
मुझसे तुम बस मोहब्बत कर लिया करो
नखरे करने में वैसे भी तुम्हारा कोई जवाब नहीं
खता उनकी भी नहीं यारो वो भी क्या करते
बहुत चाहने वाले थे किस किस से वफ़ा करते

aap ke baad har
आप के बाद हर घड़ी हम ने
आप के साथ ही गुज़ारी है
दिन कुछ ऐसे गुज़ारता है कोई
जैसे एहसान उतारता है कोई
वफा की उम्मीद ना करो उन लोगों से
जो मिलते हैं किसी और से होते है किसी और के
तमाशा करती है मेरी जिंदगी
गजब ये है कि तालियां अपने बजाते हैं
आप के साथ ही गुज़ारी है
दिन कुछ ऐसे गुज़ारता है कोई
जैसे एहसान उतारता है कोई
वफा की उम्मीद ना करो उन लोगों से
जो मिलते हैं किसी और से होते है किसी और के
तमाशा करती है मेरी जिंदगी
गजब ये है कि तालियां अपने बजाते हैं

khani suru huyi hai
कहानी शुरू हुई है तो खतम भी होगी
किरदार गर काबिल हुए तो याद रखे जाएंगे
मुद्दतें लगी बुनने में ख्वाब का स्वेटर
तैयार हुआ तो मौसम बदल चूका था
आँखों से आँसुओं के मरासिम पुराने हैं
मेहमाँ ये घर में आएँ तो चुभता नहीं धुआँ
यूँ भी इक बार तो होता कि समुंदर बहता
कोई एहसास तो दरिया की अना का होता
किरदार गर काबिल हुए तो याद रखे जाएंगे
मुद्दतें लगी बुनने में ख्वाब का स्वेटर
तैयार हुआ तो मौसम बदल चूका था
आँखों से आँसुओं के मरासिम पुराने हैं
मेहमाँ ये घर में आएँ तो चुभता नहीं धुआँ
यूँ भी इक बार तो होता कि समुंदर बहता
कोई एहसास तो दरिया की अना का होता

baki na rahe
कर जा कुछ ऐसा के जीने का अफसोस बाक़ी ना रह जाए
कर दिल की हर हसरत पूरी कोई अरमान बाक़ी ना रह जाए
जिंदगी मे सबको सबकुछ मिले बेशक़ ये ज़रूरी नहीं हैं लेकिन
जो मिला है उसकी भी कहीं कोई चाहत बाक़ी ना रह जाए
मुसलसल बदलते दौरा से भी मै बख़ूबी वाकिफ़ हूँ निश़ात
सँभलना कहीं कोई फिर भी नया तजुर्बा बाक़ी ना रह जाए
मैंने तंज़ ये दुश्मन-ए-जाँ के तो मुस्कुरा के सह लिए है मगर
देखना अपनो के दिए कोई घाव जिस्म पे बाक़ी ना रह जाए
कर दिल की हर हसरत पूरी कोई अरमान बाक़ी ना रह जाए
जिंदगी मे सबको सबकुछ मिले बेशक़ ये ज़रूरी नहीं हैं लेकिन
जो मिला है उसकी भी कहीं कोई चाहत बाक़ी ना रह जाए
मुसलसल बदलते दौरा से भी मै बख़ूबी वाकिफ़ हूँ निश़ात
सँभलना कहीं कोई फिर भी नया तजुर्बा बाक़ी ना रह जाए
मैंने तंज़ ये दुश्मन-ए-जाँ के तो मुस्कुरा के सह लिए है मगर
देखना अपनो के दिए कोई घाव जिस्म पे बाक़ी ना रह जाए
