डूबा है मेरा बदन मेरे ही खून से,
ये कांच के टुकड़ों पे भरोसे की सजा है।
बे ज़ुबाँ बादलो को अपनी दास्ताँ सुना रहा है कोई,
लगता है आसमानों को सुना रहा है कोई दर्द की दास्ताँ।
इश्क़ की नासमझी में हम अपना सबकुछ गवां बैठे,
उन्हें खिलौने की जरूरत थी और हम अपना दिल थमा बैठे।
from : Sad Shayari