Gulzar Shayari

andar tak jla deti hai

बहुत अंदर तक जला देती हैं
वो शिकायते जो बया नहीं होती

सुना हैं काफी पढ़ लिख गए हो तुम
कभी वो भी पढ़ो जो हम कह नहीं पाते हैं

बहुत अंदर तक जला देती हैं
वो शिकायते जो बया नहीं होती

मैंने दबी आवाज़ में पूछा मुहब्बत करने लगी हो
नज़रें झुका कर वो बोली बहुत

Shayari Of Gulzar