बहुत अंदर तक जला देती हैं
वो शिकायते जो बया नहीं होती
सुना हैं काफी पढ़ लिख गए हो तुम
कभी वो भी पढ़ो जो हम कह नहीं पाते हैं
बहुत अंदर तक जला देती हैं
वो शिकायते जो बया नहीं होती
मैंने दबी आवाज़ में पूछा मुहब्बत करने लगी हो
नज़रें झुका कर वो बोली बहुत
from : Shayari Of Gulzar