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कोई अटका हुआ है पल शायद
वक़्त में पड़ गया है बल शायद
आ रही है जो चाप क़दमों की
खिल रहे हैं कहीं कँवल शायद
बदल जाओ वक़्त के साथ या वक़्त बदलना सीखो
मजबूरियों को मतं कोसो हर हाल में चलना सीखो
उसने कागज की कई कश्तिया पानी उतारी और
ये कह के बहा दी कि समन्दर में मिलेंगे
कोई पुछ रहा हैं मुझसे मेरी जिंदगी की कीमत
मुझे याद आ रहा है तेरा हल्के से मुस्कुराना
हम तो अब याद भी नहीं करते
आप को हिचकी लग गई कैसे
दिल अगर हैं तो दर्द भी होंगा
इसका शायद कोई हल नहीं हैं
हसरत थी दिल में की एक खूबसूरत महबूब मिले
मिले तो महबूब मगर क्या खूब मिले
बहुत अंदर तक जला देती हैं
वो शिकायते जो बया नहीं होती
सुना हैं काफी पढ़ लिख गए हो तुम
कभी वो भी पढ़ो जो हम कह नहीं पाते हैं
बहुत अंदर तक जला देती हैं
वो शिकायते जो बया नहीं होती
मैंने दबी आवाज़ में पूछा मुहब्बत करने लगी हो
नज़रें झुका कर वो बोली बहुत
इतने लोगों में कह दो अपनी आँखों से
इतना ऊँचा न ऐसे बोला करे, लोग मेरा नाम जान जाते हैं
ज़िंदगी यूँ हुई बसर तन्हा
क़ाफ़िला साथ और सफ़र तन्हा
हम ने अक्सर तुम्हारी राहों में
रुक कर अपना ही इंतिज़ार किया
आप के बाद हर घड़ी हम ने
आप के साथ ही गुज़ारी है
काँच के पीछे चाँद भी था और काँच के ऊपर काई भी
तीनों थे हम वो भी थे और मैं भी था तन्हाई भी
हाथ छुटे तो भी रिश्ते नहीं छोड़ा करते
वक़्त की शाख से रिश्ते नहीं तोड़ा करते
उठाए फिरते थे एहसान जिस्म का जाँ पर
चले जहाँ से तो ये पैरहन उतार चले
कोई न कोई रहबर रस्ता काट गया
जब भी अपनी रह चलने की कोशिश की