मेरे बचपन के दिन भी क्या ख़ूब थे इक़बालबेनमाज़ी भी था और बेगुनाह भीदिल से जो बात निकलती है अस़र रखती हैपर नहीं ताक़ते परवाज़ मगर रखती है