mere bachpan ke din bhi

mere bachpan ke din bhi

मेरे बचपन के दिन भी क्या ख़ूब थे इक़बाल
बेनमाज़ी भी था और बेगुनाह भी

दिल से जो बात निकलती है अस़र रखती है
पर नहीं ताक़ते परवाज़ मगर रखती है

Allama Iqbal Shayari