Allama Iqbal Shayari
Poetry Of Allama iqbal in Urdu
जफ़ा जो इश्क़ में होती है वो जफ़ा ही नहीं
सितम न हो तो मोहब्बत में कुछ मज़ा ही नहीं
नशा पिला कर गिराना तो सब को आता है
मज़ा तो जब है के गिरतों को थाम ले साक़ी
सितम न हो तो मोहब्बत में कुछ मज़ा ही नहीं
नशा पिला कर गिराना तो सब को आता है
मज़ा तो जब है के गिरतों को थाम ले साक़ी

mere bachpan ke din bhi
मेरे बचपन के दिन भी क्या ख़ूब थे इक़बाल
बेनमाज़ी भी था और बेगुनाह भी
दिल से जो बात निकलती है अस़र रखती है
पर नहीं ताक़ते परवाज़ मगर रखती है
बेनमाज़ी भी था और बेगुनाह भी
दिल से जो बात निकलती है अस़र रखती है
पर नहीं ताक़ते परवाज़ मगर रखती है

Allama iqbal Shayari in Urdu
न तू ज़मीं के लिए है न आसमाँ के लिए
जहाँ है तेरे लिए तू नहीं जहाँ के लिए
सुबह को बाग़ में शबनम पड़ती है फ़क़त इसलिए
के पत्ता पत्ता करे तेरा ज़िक्र बा वजू हो कर
जहाँ है तेरे लिए तू नहीं जहाँ के लिए
सुबह को बाग़ में शबनम पड़ती है फ़क़त इसलिए
के पत्ता पत्ता करे तेरा ज़िक्र बा वजू हो कर

Allama iqbal Sher
हँसी आती है मुझे हसरते इंसान पर
गुनाह करता है ख़ुद लानत भेजता है शैतान पर
मैं तुझ को तुझ से ज़्यादा चाहूँगा
मगर शर्त है अपने अंदर मेरी जुस्तजु पैदा कर
गुनाह करता है ख़ुद लानत भेजता है शैतान पर
मैं तुझ को तुझ से ज़्यादा चाहूँगा
मगर शर्त है अपने अंदर मेरी जुस्तजु पैदा कर

Allama iqbal Poetry
क्यों मन्नतें माँगता है औरों के दरबार से इक़बाल
वो कौन सा काम है जो होता नहीं तेरे परवरदिगार से
अल्लाह को भूल गए लोग फ़िक्र रोज़ी में
तलाश रिज़्क़ की है राज़िक का ख़्याल ही नहीं
वो कौन सा काम है जो होता नहीं तेरे परवरदिगार से
अल्लाह को भूल गए लोग फ़िक्र रोज़ी में
तलाश रिज़्क़ की है राज़िक का ख़्याल ही नहीं

sajda khaliq ko
सजदा खालिक़ को भी इबलीस से याराना भी
हश्र में किस से मोहब्बत का सिला माँगे गा
ख़ुदी को कर बुलंद इतना के हर तक़दीर से पहले
ख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है
हश्र में किस से मोहब्बत का सिला माँगे गा
ख़ुदी को कर बुलंद इतना के हर तक़दीर से पहले
ख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है

dilo ki imarto me
दिलों की इमारतों में कहीं बंदगी नहीं
पत्थर की मस्जिदों में ख़ुदा ढूँढते हैं लोग
बात सजदों की नहीं ख़ुलूस ए दिल की होती है इक़बाल
हर मैख़ाने में शराबी और हर मस्जिद में नमाज़ी नहीं होता
पत्थर की मस्जिदों में ख़ुदा ढूँढते हैं लोग
बात सजदों की नहीं ख़ुलूस ए दिल की होती है इक़बाल
हर मैख़ाने में शराबी और हर मस्जिद में नमाज़ी नहीं होता

dil me khuda ka hona
दिल में ख़ुदा का होना लाज़िम है इक़बाल
सजदों में पड़े रहने से जन्नत नहीं मिलती
दिल पाक नहीं तो पाक हो सकता नहीं इंसाँ
वरना इबलीस को भी आते थे वुज़ू के फ़रायज़ बहुत
सजदों में पड़े रहने से जन्नत नहीं मिलती
दिल पाक नहीं तो पाक हो सकता नहीं इंसाँ
वरना इबलीस को भी आते थे वुज़ू के फ़रायज़ बहुत

tere azad bando ki
तेरे आज़ाद बंदों की न ये दुनिया न वो दुनिया
यहाँ मरने की पाबंदी वहाँ जीने की पाबंदी
यूँ तो ख़ुदा से माँगने जन्नत गया था मैं
करबो बला को देख कर निय्यत बदल गयी
यहाँ मरने की पाबंदी वहाँ जीने की पाबंदी
यूँ तो ख़ुदा से माँगने जन्नत गया था मैं
करबो बला को देख कर निय्यत बदल गयी

kon kehta hai
कौन ये कहता है, ख़ुदा नज़र नहीं आता
वही तो नज़र आता है जब कुछ नज़र नहीं आता
सजदों के इवज़ फ़िरदौस मिले ये बात मुझे मंज़ूर नहीं
बे लौस़ इबादत करता हूँ बंदा हूँ तेरा मज़दूर नहीं
वही तो नज़र आता है जब कुछ नज़र नहीं आता
सजदों के इवज़ फ़िरदौस मिले ये बात मुझे मंज़ूर नहीं
बे लौस़ इबादत करता हूँ बंदा हूँ तेरा मज़दूर नहीं
