कठिनाई से क्यूं डरते हो, तुम ही आज, भविष्य भी तुम
तुम ही चाँद, सूरज भी तुम, तुम धरती और जल भी तुम
तुम ही धार हो, तुम किनार हो, तुम माझी और नाव हो तुम
लिख सकते हो भविष्य अपना, हाथों की लकीर हो तुम
आज कुछ घबराये से लगते हो
ठंड मे कपकपाये से लगते हो
निखार कर आई है सुरत आपकी
बहुत दिनों बाद नहाये से लगते हो
from : Hindi Suprabhat