तोड़ा कुछ इस अदा से तालुक़ उस ने ग़ालिबके सारी उम्र अपना क़सूर ढूँढ़ते रहेचंद तस्वीर ऐ-बुताँ चंद हसीनों के खतूत बाद मरने के मेरे घर से यह सामान निकला