Ghalib Shayari

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dil se teri nigah

dil se teri nigah

दिल से तेरी निगाह जिगर तक उतर गई
दोनों को एक अदा में रजामंद कर गई
मारा ज़माने ने ग़ालिब तुम को
वो वलवले कहाँ वो जवानी किधर गई

ishq mujhko nahi

ishq mujhko nahi

इश्क़ मुझको नहीं वेहशत ही सही
मेरी वेहशत तेरी शोहरत ही सही
कटा कीजिए न तालुक हम से
कुछ नहीं है तो अदावत ही सही

main janta hoon

main janta hoon

क़ासिद के आते आते खत एक और लिख रखूँ
मैं जानता हूँ जो वो लिखेंगे जवाब में

हमको मालूम है जन्नत की हकीकत लेकिन
दिल के खुश रखने को ग़ालिब यह ख्याल अच्छा है

toda kuch iss ada se

toda kuch iss ada se

तोड़ा कुछ इस अदा से तालुक़ उस ने ग़ालिब
के सारी उम्र अपना क़सूर ढूँढ़ते रहे

चंद तस्वीर ऐ-बुताँ चंद हसीनों के खतूत
बाद मरने के मेरे घर से यह सामान निकला

mai nadan tha

mai nadan tha

मैं नादान था जो वफ़ा को तलाश करता रहा ग़ालिब
यह न सोचा के एक दिन अपनी साँस भी बेवफा हो जाएगी

बे-वजह नहीं रोता इश्क़ में कोई ग़ालिब
जिसे खुद से बढ़ कर चाहो वो रूलाता ज़रूर है