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हाथ छूटें भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते
वक़्त की शाख़ से लम्हे नहीं तोड़ा करते
मैं हर रात सारी ख्वाहिशों को खुद से पहले सुला देता
हूँ मगर रोज़ सुबह ये मुझसे पहले जाग जाती है
आइना देख कर तसल्ली हुई
हम को इस घर में जानता है कोई
वक़्त रहता नहीं कहीं टिक कर
आदत इस की भी आदमी सी है
तजुर्बा कहता है रिश्तों में फैसला रखिए
ज्यादा नजदीकियां अक्सर दर्द दे जाती है
खुली किताब के सफ़्हे उलटते रहते हैं
हवा चले न चले दिन पलटते रहते है
मुझसे तुम बस मोहब्बत कर लिया करो
नखरे करने में वैसे भी तुम्हारा कोई जवाब नहीं
खता उनकी भी नहीं यारो वो भी क्या करते
बहुत चाहने वाले थे किस किस से वफ़ा करते
आप के बाद हर घड़ी हम ने
आप के साथ ही गुज़ारी है
दिन कुछ ऐसे गुज़ारता है कोई
जैसे एहसान उतारता है कोई
वफा की उम्मीद ना करो उन लोगों से
जो मिलते हैं किसी और से होते है किसी और के
तमाशा करती है मेरी जिंदगी
गजब ये है कि तालियां अपने बजाते हैं
कहानी शुरू हुई है तो खतम भी होगी
किरदार गर काबिल हुए तो याद रखे जाएंगे
मुद्दतें लगी बुनने में ख्वाब का स्वेटर
तैयार हुआ तो मौसम बदल चूका था
आँखों से आँसुओं के मरासिम पुराने हैं
मेहमाँ ये घर में आएँ तो चुभता नहीं धुआँ
यूँ भी इक बार तो होता कि समुंदर बहता
कोई एहसास तो दरिया की अना का होता
कर जा कुछ ऐसा के जीने का अफसोस बाक़ी ना रह जाए
कर दिल की हर हसरत पूरी कोई अरमान बाक़ी ना रह जाए
जिंदगी मे सबको सबकुछ मिले बेशक़ ये ज़रूरी नहीं हैं लेकिन
जो मिला है उसकी भी कहीं कोई चाहत बाक़ी ना रह जाए
मुसलसल बदलते दौरा से भी मै बख़ूबी वाकिफ़ हूँ निश़ात
सँभलना कहीं कोई फिर भी नया तजुर्बा बाक़ी ना रह जाए
मैंने तंज़ ये दुश्मन-ए-जाँ के तो मुस्कुरा के सह लिए है मगर
देखना अपनो के दिए कोई घाव जिस्म पे बाक़ी ना रह जाए