नज़र और नसीब में भी क्या इत्तफ़ाक़ है,
नज़र उसे ही पसंद करती है जो नसीब में नही होता।
कल रात वो शख्स मेरे खवाबो का भी काटल कर गया,
लोग कितना मुक़ाम रखते है छोड़ जाने के बाद।
मै मर जाऊ तो उसे खार तक भी ना होने देना,
वो सख्श मसरूफ बहुत है कही उसका वक़्त बर्बाद न हो जाये।
from : Dard Bhari Shayari